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After the Inauguration of National Seminar Lecture on “Relevancy of Gandhi in Present India “at Mahila College, Yamunanagar (Haryana)

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April 13, 2014 · 2:38 PM

Lecture on “Muzako Sanmati De Bhagvan”at Khedbrmah College

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April 3, 2014 · 10:29 AM

With Nature

with Nature

Gandhi Research Foundation, Jalgaon, Maharashtra.

21 March 2014.

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March 23, 2014 · 6:18 AM

National Seminar at North Maharashtar University, Jalgaon on 21 March 2014

National Seminar at North Maharashtar University, Jalgaon on 21 March 2014

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March 23, 2014 · 5:10 AM

Lecture on “Religions Tolerances, Secularism and Democracy in India “at National Seminar Organized by Centre for Culture and Development, Vadodara on 8 March 2014 3 to 4PM

Lecture on “Religions Tolerances, Secularism and Democracy in India “at National Seminar Organized by Centre for Culture and Development, Vadodara on 8 March 2014 3 to 4PM

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March 13, 2014 · 7:53 AM

Valedictory Address of National Seminar on “Gandhi’s Philosophy of Styagarah and the present Day of Political Crisis”at Panjab University, Chandigarh on 23 February 2014

Prof. Mehboob Desai delivered a Valedictory lecture. On the stage Prof. Asha Kaushik and Dr. Manish Shrama.

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February 26, 2014 · 6:32 AM

National Seminar

National Seminar

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September 19, 2013 · 6:09 AM

NATIONAL SEMINAR ON GRASSROOT WORKERS OF GANDHIAN ERA (1920-1947)

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा प्रायोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी
गांधीयुग के ज़मीनी कार्यकर्ता
(1920-1947)
(20-21 दिसंबर, 2013)

प्रो. महेबूब देसाई
संगोष्ठी संयोजक

प्रो. कनुभाई नायक
आचार्य

डॉ. राजेन्द्र खिमाणी
कुलसचिव
इतिहास एवं संस्कृति विभाग
महादेव देसाई समाजसेवा महाविद्यालय,
गूजरात विद्यापीठ
आश्रम रोड, अहमदाबाद-380014
राष्ट्रीय आन्दोलन में गांधी जी के प्रवेश से आन्दोलन का पूरा चरित्र ही बदल गया। गांधी ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को जन-जन तक पहुँचाया। राष्ट्रीय आन्दोलन के मुद्दों को जनता से जोड़ा। सही मायनों में देखा जाए तो इसी समय में ही स्वतन्त्रता संघर्ष ने राष्ट्रीय स्वरूप लिया था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जो कि अभी तक एक अभिजात वर्ग का ही एक संगठन हुआ करता था जिसमें ज़मीनी कार्यकर्ता जुड़ने लगे। भारत के सुदूर और पहुँच की दृष्टि से जटिल माने जाने वाले विस्तारों में भी लोग पहुँचे और स्वतन्त्रता का अलख जगाया। ईस्वी सन् 1920 से लेकर 1947 तक का काल भारतीय इतिहास में गांधी के प्रभाव का युग माना जाता है, इसलिये यहाँ पर गांधी युग से तात्पर्य 1920-1947 का काल है।
यद्यपि इस काल में भारतीय राजनीति और सामाजिक स्तर पर गांधी का प्रभाव व्यापक था किन्तु इससे भिन्न विचारधाराओं का भी अपना प्रभाव था। राजनीति, राज्यव्यवस्था, समाज-व्यवस्था आदि को लेकर अपने-अपने विश्लेषण थे। इन विभिन्न विचारधाराओं से भारतीय राजनीति और समाज दोनों के स्वरूप और चरित्र में व्यापक बदलाव देखने को मिलते हैं। वास्तव में यह वह समय था जिसे हम भारत के नवजागरण का चरम मान सकते हैं। राजनीतिक स्वतन्त्रता के साथ-साथ अधिकारों, कर्तव्यों, जरूरतों आदि पर विचार और कार्य होने लगा। ये मुद्दे अब सत्ता पर विचार-विमर्श के मुद्दे नहीं रहे बल्कि जन-विचार के मुद्दे बनने लगे। अब महज अंग्रेजों से नहीं बल्कि हर तरह की गुलामी से मुक्ति की बात सामने आने लगी। इस प्रकार की चेतना में ज़मीन से जुड़े कार्यकर्ताओं की सबसे अहम भूमिका रही है। हम ज़मीनी कार्यकर्ता उसे कह सकते हैं जो किसी भी कार्यक्रम में सबसे निचले स्तर पर काम करता हो अर्थात वह उन स्थानीय प्रतिनिधियों के लिये जमीन तैयार करता हो जिन्हें हम सामान्य भाषा में जन-प्रतिनिधि के रूप में जानते हैं। किसी भी कार्यक्रम की सच्ची और आधारभूत ताकत तो वह होता है। फिर चाहे वह कोई राजनीतिक कार्यक्रम हो, गांधी जी के रचनात्मक कार्यक्रम हों, ट्रेड यूनियन का कोई आन्दोलन हो, सामाजिक मुद्दों को लेकर किया गया कार्य हो, शैक्षणिक या साहित्यिक गतिविधियाँ हों।
अब तक इतिहास लेखन में राष्ट्रीय स्तर के प्रमुख नेतृत्व की बात ही होती रही है। हालाँकि उपाश्रित अध्ययन ने ज़मीनी स्तर के इतिहास-लेखन का कार्य किया है किन्तु ऐसे ज़मीनी स्तर के कार्यकर्ता जो कि उन बड़े बदलावों की नींव की तरह थे जो बाद में देखे गए और जो आज भी हो रहे हैं, के विषय में इतिहास अभी भी पूरी तरह नहीं खुला है। इस संगोष्ठी का मूल उद्देश्य गांधी युग में भारत के विभिन्न हिस्सों में सामाजिक-राजनीतिक बदलावों के लिये कार्य करने वाले उन ज़मीनी कार्यकर्ताओं को मुख्यधारा में लाना है जिन्हें आज तक इतिहास में कभी भी स्थान नहीं मिला और वे इतिहास की सुन्दर इमारत में नींव के पत्थर की तरह दब गए हैँ।
उप विषयः-
1. राजनीतिक कार्यकर्ता
2. रचनात्मक कार्यकर्ता
3. ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता
4. महिला कार्यकर्ता
5. मुस्लिम कार्यकर्ता
6. साहित्यिक गतिविधियाँ एवं कार्यकर्ता
7. दलित, आदिवासी एवं कृषक कार्यकर्ता

अनुदेश
शोध पत्र भेजने संबंधी अनुदेश
• शोध पत्र की शब्द सीमा 4000 शब्दों से अधिक नहीं होनी चाहिये।
• शोध पत्र के साथ 250 शब्दों का सार भी भेजना अनिवार्य है।
• शोध-पत्र प्रस्तुत करने के लिये पंद्रह मिनट का समय दिया जाएगा।
• शोध पत्र गुजराती, हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा में स्वीकार्य किये जाएँगे।
• शोध पत्र में गुजराती भाषा के लिए श्रुति, हिन्दी के लिए मंगल एवं अंग्रेजी के लिए टाइम्स न्यू रोमन फाँट का प्रयोग किया जाए।
• कुल 40 शोध पत्रों का चयन स्क्रुटिनी समिति के द्वारा किया जाएगा।
• जिन शोध पत्रों का चयन किया जाएगा उन्हें ही प्रस्तुत करने की अनुमति होगी।
• चयनित शोध पत्र के लेखक को स्वयं प्रस्तुत होने पर भारतीय रेलवे का द्वीतिय श्रेणी स्लीपर का आने-जाने का किराया उसके स्थान से अहमदाबाद तक का दिया जाएगा, जिसके लिये टिकट प्रस्तुत करना होगा।
• शोध पत्र स्वीकार करने की अन्तिम तारीख 10 नवंबर, 2013 रहेगी।
• 20 नवंबर, 2013 तक चयनित शोध पत्रों की सूचना दे दी जाएगी।

• शोध पत्र निम्नलिखित पते पर सॉफ्ट एवं हार्ड कॉपी में भेजे जा सकते हैं-

डॉ. महेबूब देसाई
अध्यक्ष,
इतिहास एवं संस्कृति विभाग
गूजरात विद्यापीठ, आश्रम रोड़
अहमदाबाद- 380014
ई-मेल- mehboobudesai@gmail.com
संपर्क – 09825114848,
079-40016277 (कार्यालय)
079-26818841 (निवास)

रजिस्ट्रेशन फीस
• शोध पत्र चयनित अभ्यर्थी के लिए रु. 500.
• संगोष्ठी में बिना शोध पत्र के भाग लेने वालों के लिए रु. 800.

(सभी अभ्यर्थियों की ठहरने एवं भोजन की व्यवस्था आयोजन-संस्था द्वारा कि जाएगी)

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September 14, 2013 · 11:00 AM

“DHVJ VANDAN” by Prof. Mehboob Desai at Sabaramati Asharam, Ahemadabad on 15 August 2013.

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August 15, 2013 · 9:29 AM

સાબરમતી આશ્રમમાં ધ્વજવંદન કરવાનું નિમંત્રણ

સાબરમતી આશ્રમમાં ધ્વજવંદન કરવાનું નિમંત્રણ

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August 14, 2013 · 2:58 AM